Saturday, June 22, 2013

क्या है कंप्यूटर वायरस, क्या - क्या खतरे है इससे, और बचाव के तरीका क्या है.......


वेलकम  टू  आई० सी० टी० कंप्यूटर कैंपस- अलीगंज शाहगंज जौनपुर - ट्रेनर - संतोष कुमार गुप्ता  द्वारा  सम्पादित :- 
कंप्यूटर वायरस एक प्रकार का प्रोग्राम होता है जो प्रोग्रामर द्वारा तैयार किया जाता है और यह प्रोग्राम कंप्यूटर व कंप्यूटर यूजर के लिए बड़ी समस्या है इसके वायरस रूपी प्रोग्राम की वजह से आपका कंप्यूटर में समस्या आ जाती है,कंप्यूटर वायरस का  सीधा हमला आपके सॉफ्टवेर पर होता है और कभी कभी ये वायरस हार्डवेयर को भी नुकसान पंहुचा देते है लेकिन इसकी सम्भावना बहुत ही कम रहती है.कंप्यूटर वायरस  यूजर की महत्वपूर्ण जानकारी को नष्ट कर देता और साथ ही साथ आपके सूचना को बिना आपके जानकारी के दुसरे तक पंहुचा देता है.इस वायरस के वजह से हमारे कंप्यूटर की रफ़्तार काफी कम हो जाती है और हमरा ईमेल इनबॉक्स अवांछित मेल से भर जाता है. कंप्यूटर वायरस का नेचर है कि वह अपना क्लोन बनाकर पुरे सिस्टम को संक्रमित कर देता है और नेटवर्क,पेन ड्राईव,इन्टरनेट,सी० डी ०,डी.वी.डी की वजह से दुसरे कंप्यूटर में भी सरलता से पहुच कर उसको भी संक्रमित कर देता है.

अगर कंप्यूटर वायरस को कंप्यूटर की भाषा में परिभाषित किया जाये तो कुछ इसप्रकार से कर सकते है "वायरस" किसी कोड का भाग होता है जिसे गुप्त रूप से किसी सिस्टम को दूषित करने या इसके डेटा नष्ट करने के उद्देश्य से प्रविष्ट कराया जाता है. किसी वास्तविक वायरस में स्वयं को दोबारा उत्पन्न करने और अन्य कंप्यूटर्स को प्रभावित करने की क्षमता होती है"

कंप्यूटर वायरस का इतिहास एवं प्रकार :-
सबसे पहला वायरस क्रीपर था जो अरपानेट पर पाया  गया था , जो १९७० के दशक की शुरुआत में इंटरनेट से पहले इन्टरनेट  को अरपानेट  के नाम से जाना जाता था इसमें सिमित यूनिवर्सिटी ही जुड़े थे.1974  में वेबित (webit) वायरस आया जो किसी भी मशीन को पूरी तरीके से बर्बाद कर सकता था. 1980 के दशक के आस-पास फ्लॉपी ड्राईव के द्वारा फ़ैलाने वाला वायरस जिसका नाम एइक क्लोनर (eik cloner ) था. 1990 के बाद अधिकांश कंप्यूटर पर माइक्रोसॉफ्ट के सॉफ्टवेर रन हो रहे थे जिसके वहज से वायरस को फैलने की बहुत बड़ा सिंगल प्लेटफोर्म मिल गया और जब इन्टरनेट के दौर 1996 से स्टार्ट हुआ तो ईमेल व फाइल ट्रान्सफर के जरिये वायरस तेजी से फैलने लगे . 

कंप्यूटर वायरस लगभग 9 प्रकार के होते है :-

1- बूट सेक्टर वायरस  (Boot Sector Virus) इस वायरस का इफ़ेक्ट बूट सेक्टर पर पड़ता है जिसके वहज से मशीन स्टार्ट नहीं हो पाती 
2 - ब्राउजर हाइजैकर  ( Browser Hijacker) अक्सर इन्टरनेट पर कई बार वेब साइट्स पर विज्ञापन की बाढ़ आ जाती है ये इसी वायरस की वजह से होता है 
3 - डायरेक्ट एक्शन वायरस (Direct Action Virus) ये वायरस किसी executable फाइल के साथ कंप्यूटर को इन्फेक्टेड करता है 
4 - फाइल इन्फेक्टोर वायरस (File Infector Virus)  ये भी executable के तरीके का होता है लेकिन यह हमारे प्रोग्राम की कोड को बदल कर अपना कोड लिख देता है 
5 -  मैक्रो वायरस  (Macro Virus) अक्सर इस प्रकार के वायरस माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस से सम्बंधित होते है ये आउटलुक के द्वारा ईमेल कि कई कॉपी भेजकर यूजर को परेशान कर सकता है इसका उदाहरन- Melissa वायरस 
6 - मल्तिपर्तिज  वायरस  (Multiparties Virus) इस प्रकार वायरस कई सोर्स से फैलकर हमारे सिस्टम सॉफ्टवेर और अंको फाइल को नुकसान कर देते है 
7 - पोलिमर्फिक वायरस  (Polymorphic Virus) - इस प्रकार के वायरस बहुत ही खतरनाक होते है एक तो ये हमेशा अपना कोड बदलते रहते है और दूसरा इनका कोड कूट भाषा में लिखा होता है जिसे एंटी वायरस को जाचने में काफी मुस्किल आती है 
8 -   रेजिडेंस वायरस  (Resident Virus) इस प्रकार के वायरस कंप्यूटर मेम्रोरी के अन्दर प्रवेश कर किसी भी एक्शन फाइल को इन्फेक्टेड कर सकते है 
9 -  वेब स्क्रिप्टिंग  वायरस  (Web Scripting Virus)  कुछ ऐसी भी वेब साइट्स होती है जन्हा पर किसी भी इनफार्मेशन के देखने के लिए कई  प्रकार के प्रोग्राम को रन कराना पड़ता है और उसी के थ्रू आपके कंप्यूटर में ब्राउसर के द्वारा वायरस कंप्यूटर के अन्दर प्रवेश कर जाता है.

कंप्यूटर वायरस का नाम और उनका प्रभाव :-

ईमेल वायरस : यह वायरस ईमेल के अटैचमेंट फाइल के साथ आता है जैसे ही अनजान ईमेल फाइल के अटैचमेंट को ओपन करते है तो यह वायरस आपके मेल को बॉक्स कई मेलो से भर देता है.
ट्रोजन हार्सेस:- ये वायरस इन्टरनेट पर किसी प्रोग्राम या गेम के रूप में दिखाई देता है और जैसे ही इसे डाउनलोड करते है ये आपके कंप्यूटर के प्रोग्राम को नष्ट कर देता है लेकिन ये अपना क्लोन नहीं बनता .
वम्र्स:- ये वायरस हमारे कंप्यूटर की सिक्यूरिटी सिस्टम की कमी की वजह से हमारे कंप्यूटर आ सकता है .
अब तक के सबसे खतरनाक वायरस :-
1- आईलवयू 2000 (I LOVE YOU 2000) - यह वायरस 5 मई 2000 को फिलीपिंस से ईमेल के जरिये फैलाया गया था.इस वायरस को फिलीपिंस के दो युवा स्टूडेंट्स Reomel Ramones एवं Onel de Guzman ने बनाया था.यह वायरस ईमेल के अटैचमेंट फाइल के साथ जिसके मेल पर जाता और जो उसे खोलता वह उसके मशीन में अपना क्लोन छोड़ देता और एड्रेस बुक से सभी के पते पर वह वायरस चला जाता. ये वायरस मशीन के सिस्टम में भारी परिवर्तन करके यूजर का काफी नुकसान किया. इस वायरस ने समूचे इन्टरनेट के 15 फीसदी हिस्से पर अपना कब्जा करके लगभग 5.5 लाख डॉलर का नुकसान किया .
मेलिसा 1999(Melissa – 1999)- यह मैक्रो वायरस के नाम से जाना जाता है यह कंप्यूटर सॉफ्टवेर की महत्वपूर्ण फाइल को डिलीट कर देता है यह ऑफिस सॉफ्टवेर के जरिये फैलता है .
CIH a.k.a. The Chernobyl Virus -यह वायरस ताइवान के Chen Ing Hau के द्वारा लिखा गया था | यह वायरस भी अब तक के इतिहास का सबसे ज्यादा खतरनाक वायरसों में से एक माना जाता है | इसकी वजह से करीब २० से ८० मिलियन डालर का नुकसान हुआ था | यह विंडोज 95,98 की .EXE फाईल्स को संक्रमित करने में समर्थ था | साथ ही ये कंप्यूटर के मेमोरी में रह सकता था | हार्ड डिस्क  तथा बायोस(BIOS) के डेटा को ये ओवरराईट कर देता था .
 बैरोटेस -1993 (Barrotes – 1993) इस वायरस से संक्रमित पीसी पर स्क्रीन पर कई लाईने दिखाई देती थी | यह पहला सबसे ज्यादा चर्चित वायरस माना जाता है, जोकि स्पेन में सबसे पहले पाया गया था | ये .COM तथा .EXE फाईल्स को संक्रमित करता था |साथ ही ये हार्ड-डिस्क के मास्टर बूट रिकोर्ड को भी ओवरराईट करता था.
स्पायवेयर 
स्पायवेयर आपकी जानकारी के बिना आपके कंप्यूटर पर स्थापित हो सकता है. ये प्रोग्राम आपके कंप्यूटर की कॉन्फ़िगरेशन को बदल सकते हैं या विज्ञापन डेटा और व्यक्तिगत जानकारी एकत्रित कर सकते हैं. स्पायवेयर, इंटरनेट खोज आदतों को ट्रैक कर सकता है और आपके वेब ब्राउज़र को आपके द्वारा टाइप की वेबसाइट से दुसरे वेब साईट पर बेज सकता है .
मैलवेयर क्या है?
मैलवेयर एक ऐसा शब्द है, जिसे दुर्भावनापूर्ण सॉफ़्टवेयर के लिए उपयोग किया जाता है, जो किसी कंप्यूटर सिस्टम को क्षति पहुँचाने या इस पर अवांछित कार्रवाई करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है. मैलवेयर के उदाहरणों में निम्न शामिल हैं:
  1. वायरस
  2. वर्म
  3. ट्रोज़न हॉर्स
  4. स्पायवेयर
  5. खराब सुरक्षा सॉफ़्टवेयर
कंप्यूटर वायरस के लक्षण

  1. कंप्यूटर सामान्य से अधिक धीरे चलता है।
  2. कंप्यूटर रेसोप्न्स नहीं  देता है या रह -रह  हैंग हो जाता है।
  3. कंप्यूटर सिस्टम फाइल एरर दिखता है या हर कुछ मिनटों में पुन: चलने लगता है।
  4. कंप्यूटर जल्दी स्टार्ट नहीं होता और कभी कभी  स्टार्ट हो जाता है ।
  5. आपके कंप्यूटर के सॉफ्टवेर  सही ढंग से काम नहीं करते।
  6. डिस्क या डिस्क ड्राइव काफी स्लो  हो जाती हैं।
  7. सही ढंग से डिस्प्ले  नहीं आता है 
  8. अव्यवस्थित तरीके से  मेन्‍यूज़ और डायलॉग बॉक्‍स शो होना ।
वायरस को कैसे रोकें?

  1. ईमेल के अटैचमेंट्स फाइल  की जाँच करें
  2. सदैव खोलने से पहले अटैचमेंट्स  की स्कैनिंग कर उन्हें जाँच लें और सुनिश्चित करें कि अटैचमेंट्स परचित  यूजर  के द्वारा ही प्राप्त किया गया है।
  3. एक्सटेन्शन्स की जाँच करें-डाउनलोड करने से पहले सदा फ़ाइल एक्सटेंशन की जाँच करें और कई एक्सटेंशन वाली   फाइलों को डाउनलोड करने से बचें।
  4. ब्राउज़र सेटिंग्स के माध्यम से-ब्राउज़र सेटिंग्स कोसदैव केवल भरोसेमंद वेबसाइटों की साइटों की अनुमति निर्धारित करें।
  5. फेक या जिन्हें आप नहीं जानते उनके ई-मेल पर ध्यान न दें
  6. अपरचित यूजर  से प्राप्त फ़ाइलों को डाउनलोड करने से बचें, और सदैव  से प्राप्त फाइलों अपरचित यूजर  की उपेक्षा करना या उन्हें हटा देना बेहतर होता है।
  7. सॉफ्टवेयर का उपयोग करके-हमेशा एंटी वायरस सॉफ्टवेयर का उपयोग करें और नवीनतम पैच के साथ अपडेट  करें और फ़ाइलों को डाउनलोड करने से पहले स्कैन करें।






Thursday, June 20, 2013

क्या है वाई-फाई सिस्टम और कैसे काम करता है और क्या फायदे है इसके -

वेलकम  टू  आई० सी० टी० कंप्यूटर कैंपस- अलीगंज शाहगंज जौनपुर - ट्रेनर - संतोष कुमार गुप्ता  द्वारा  सम्पादित :- 
फोन लाइन के सहारे इंटरनेट अब बीते जमाने की बात हो गई है आजकल तो वाईफाई का जमाना है, जिसके सहारे बिना किसी तार के इंटरनेट एक्सेस किया जा सकता है.वाई-फाई एक वायरलेस टेक्नोलॉजी है जिसका खासा
यूज़ इन्टरनेट से जुड़ने के लिए किया जाता है. वाई-फाई (wi-fi) का फुल नेम वायरलेस वायरलेस फिडेलिटी है.यह वाई-फाई एक ऐसा नेटवर्क है जो रेडियो सिग्नल को ब्रॉडकास्ट करके उच्चय स्पीड का ट्रांसमिशन बनता है जिससे लोग आसानी से इन्टरनेट से जुड़ कर अच्छी स्पीड के साथ इन्टरनेट यूज़ करते है. आज कल जितने भी लैपटॉप,टेबलेट,नोटबुक,स्मार्ट फ़ोन आ रहे है सब में वाई-फाई फैसिलिटी है. वाई-फाई नेटवर्क के लिए एक राऊटर की जरुरत पड़ती है जो वाई-फाई सिंग्नल को फैलाकर कर वाई-फाई फैसिलिटी से युक्त डिवाईसो को कनेक्ट करता है.इस समय
वाई-फाई का प्रयोग एअरपोर्ट,बड़े बड़े होटल,ऑफिस,यूनिवर्सिटी कैम्पस में किया जा रहा है जन्हा लोगो को वायर लेस इन्टरनेट सेवा दी जा रही है.वाई-फाई को राऊटर या एक्सेस पॉइंट लगाकर हॉट स्‍पॉट बनाकर कई सारे वाई-फाई से लैस उपकरणों को आसानी से जोड़ सकते है.भारत में पुणे पहला ऐसा शहर है जो पूरी तरह वाई फाई युक्त है.: ट्रेन में इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराने के लिए रेल प्रशासन ट्रेनों को वाई-फाई तकनीक से लैस करने जा रहा है.इसकी सबसे पहले सेवा दिल्ली-हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस (12302) हुयी थी .


स्मार्ट मोबाइल से पोर्टेबल वाईफाई हॉट स्‍पॉट बनाकर कई सारे डिवाईसो को जोड़ सकते है.इसके लिए सेटिंग में जाये वायरलैस एंड नेटर्वक आप्शन पर क्लिक करे और Portable Wi-Fi hotspot पर चेक मार्क लगा दे ऐसा करते ही आपका मोबाइल राऊटर या ब्रॉडबैंड के तरीके से काम करने लगेगा .
वाई-फाई सिस्टम की टेकनिकल पॉइंट
  1. यह टेक्नोलॉजी IEEE 802.11 कई स्टैण्डर्ड पर बेस्ड है.
  2. ये टेक्नोलॉजी 1999 के बाद आई थी.
  3. इसकी स्पीड 11 से 60 MB पर सेकंड है.
  4. इसकी रेंज 10 मीटर से लेकर 150 फिट तक है.
  5. वाई-फाई सिस्टम के लिए एक्सेस पॉइंट और वाई-फाई कार्ड् की जरुरत होती है.
  6. वाई-फाई सिस्टम में एक एक्सेस पॉइंट में 30 यूजर कनेक्ट हो सकते है.
  7. वाई-फाई सिस्टम तीन typologies पर काम करता है- (i) एक्सेस पॉइंट बेस्ड (ii) पियर टू पियर (iii) पॉइंट टू मल्टीपॉइंट ब्रिज.
  8. वाई-फाई सिस्टम में दो प्रकार की सिक्यूरिटी के आप्शन है पहला- यूजर ऑथेंटिकेशन और दूसरा सर्वर ऑथेंटिकेशन
वाई-फाई सिस्टम सिक्यूरिटी को तीन लेवल से एक्सेस किया जा सकता है-
(i) SSI (ii) WEP (iii) WAP.
वाई-फाई सिस्टम को पासवर्ड प्रोटेक्टेड रखना
वाई-फाई यूजर्स को अपने वाईफाई कनेक्शन को पासवर्ड प्रोटेक्टेड रखना चाहिए। वाईफाई कनेक्शन के साथ थ्री लेवल सिक्युरिटी कवर मौजूद है, जिसका इस्तेमाल कर कंस्यूमर इस खतरे से बच सकता है। वाई-फाई कनेक्शन के साथ डिफॉल्ट सिक्युरिटी ऑप्शंस भी होते हैं। सबसे पहला लेवल डिवाइस को "की" पासवर्ड से प्रोटेक्ट करना है।

ब्लूटूथ और वाई-फाई में क्या अंतर है
:-
ये दोनो वायरलेस टेक्नोलॉजी पर काम करते है.ब्लूटूथ जो सिस्टम है वह कम दुरी पर दो उपकरणों के बीच डाटा ट्रान्सफर करने के लिए इसका प्रयोग होता है.यह लो बैंडविड्थ पर काम करता है जैसे वायरलेस कीबोर्ड,माउस,इयार्फोने आदि जो कि वाई-फाई हाई बैंडविड्थ पर काम करता है इसकी डिस्टेंस भी ज्यादा होती है.ब्लूटूथ का बिट रेट 2.1 MBPS होता है जबकि वाई फाई का बिट रेट 600 MBPS होता है..

Tuesday, June 18, 2013

क्या 2G 3G और 4G जाने इसके बारे में

वेलकम  टू  आई० सी० टी० कंप्यूटर कैंपस- अलीगंज शाहगंज जौनपुर - ट्रेनर - संतोष कुमार गुप्ता  द्वारा  सम्पादित :- 

आज मै आपको  2G 3G और 4G के बारे में बताऊंगा. अक्सर आपने सुना होगा  इंटरनेट के स्पीड को लेकर 3G में इन्टरनेट बहुत तेज़ चलता है downloding और uploading भी फ़ास्ट होता है. इसी प्रकार आपके मोबाइल के सन्दर्भ में कहा जाता है कि आपकी मोबाइल 2G है या 3G है. मोबाईल से अभी हम केवल एक दुसरे की आवाज सुन सकते थे लेकिन मोबाइल में 3G आने से आवाज के साथ लाइव वीडियो के साथ बात भी कर सकते है.अभी हाल में ही 4G का भी चर्चा सुनाई दिया उसके बारे में भी आगे बाते करंगे. 

मोबाइल के सन्दर्भ में  2G, 3G और 4 G को सेकंड जेनेरेसन,थर्ड जनरेशन, फोर्थ जनरेशन के नाम से जाना जाता है. फर्स्ट जनरेशन को एनालॉग के नाम से जाना जाता था.सेकंड जनरेशन की शुरुवात 1991में सिम (SUBSCRIBER IDENTITY MODULE)  कार्ड के साथ हुआ था. ये तकनीक संचार क्षेत्र में बड़ी सफल रही और आवाज की क्वालिटी में काफी सुधार आया.बहुत लोग ये बात नही पता होगा 2G और 3G के बीच 2.5 G भी आया था जिसके वजह से मोबाइल में GPRS ( GENERAL PACKET RADIO SERVICE) टेक्निक का आगाज हुआ जिससे मोबाइल में इन्टरनेट सेवा का लुफ्त उठा सकते है.हमारा मोबाइल जिस जनरेशन का  होगा हम उसी प्रकार के जनरेशन के टेक्नोलॉजी को यूज़ कर सकते है.

2G और 3G टेक्नोलॉजी में क्या अंतर है वह जाने :-

2 G टेक्नोलॉजी
  1. इसका डाटा ट्रान्सफर धीमा है
  2. इसका GSM (GLOBAL SYSTEM FOR MOBILE) टेक्नोलॉजी पर काम करता है.
  3. इसकी शुरुवात पहली बार Finland में 1991 में हुआ था.
  4. इसमें TDMA,CDMA नेटवर्क का भी प्रयोग होता है.
  5. इस टेक्नोलॉजी से वीडियो कांफ्रेस्सिंग ,लाइव टेलीविज़न तथा हाई स्पीड की इन्टरनेट सेवा नहीं मिल सकती है. 
  6. किसी भी टेलिकॉम कंपनी को 2G नेटवर्क को सेटअप करने में कास्ट 3G के नेटवर्क से कम आता है इसलिए इस टेक्नोलॉजी का रेट सस्ता है.
  7. 2G नेटवर्क का डाटा स्पीड 5०,००० बिट पर सेकंड होता है
  8. 2G नेटवर्क  नेटवर्क कम सिक्योर होता है
  9. 2G टेक्नोलॉजी  में downloading,uploading की स्पीड 236 kbps होती है
  10. 2G टेक्नोलॉजी आज विश्व में लगभग सब जगह प्रचलित है .
3 G टेक्नोलॉजी

  1. इसका डाटा ट्रान्सफर फ़ास्ट है 
  2. यह GPS ( GLOBAL POSITIONING SYSTEM) टेक्नोलॉजी पर काम करता है 
  3.  इसकी शुरुवात पहली बार जापान में  2001 में हुआ था 
  4.  ये  5 रेडियो नेटवर्क को सपोर्ट कर सकता है - CDMA, TDMA and FDMA. CDMA accounts for IMT-DS
  5.  इस टेक्नोलॉजी से वीडियो कांफ्रेस्सिंग ,लाइव टेलीविज़न तथा हाई स्पीड की इन्टरनेट सेवा  पर बड़े आराम से काम कर सकते है.
  6.  किसी भी टेलिकॉम कंपनी को 3G नेटवर्क को सेटअप करने में कास्ट 2G के नेटवर्क से बहुत ज्यादा आता है जिसके वजह से ये सेवा अभी महंगी है.
  7. 3G नेटवर्क में डाटा स्पीड  4 million पर सेकंड होता है.
  8. 3G नेटवर्क  ज्यादा सिक्योर होता है.
  9. 3 G टेक्नोलॉजी  में downloading,uploading की स्पीड 5 Mbps से लेकर 21 Mbps तक होती है 
  10. 3G टेक्नोलॉजी अभी ज्यादातर विश्व के संम्पन देशो में ही प्रचलित है. विकाशील देश अब इसकी शुरुवात कर रहे है.
आजकल 3G मोबाइल सेवा धीरे धीरे भारत में भी कॉमन होती जा रही है। पिछले कुछ समय में BSNL के बाद, टाटा डोकोमो, एयरटेल, वोडाफोन आदि कम्‍पनियां भी 3G वार में कूद चुकीं हैं। इस वार का नतीजा उपभोक्‍ताओं के लिए ही हित में होगा। हालांकि आने वाले कुछ सालों में हमें 3G के साथ साथ Fourth generation यानि 4G सेवा का भी लुत्‍फ उठाने का मौका मिल सकता है, लेकिन अभी हमें इसके लिए और इन्‍तज़ार करना होगा।

4 G टेक्नोलॉजी 
4G  मोबाइल टेक्नोलॉजी की वायरलैस सेवा की फोर्थ जनरेशन है .4G टेक्नोलॉजी की शुरुवात 2००8 में हुई थी . इसके पहले 2G,3G जनरेशन था.  थ्री जी तकनीक में आर्थोगोनल फ्रीक्वेंसी डिवीजन मल्टीपल एक्सेस (ओएफडीएमए) के द्वारा  नेटवर्क फ़ास्ट करके डाटा को तेजी से ट्रांसमिट कराया गया.लेकिन फोर्थ जनरेशन में IP टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया है जो थ्री जी से बेहतर और फ़ास्ट काम करती है .फोर जी की गति १०० एमबीपीएस है  जो कि  थ्री जी के मुकाबले ५० गुना अधिक है.

फोर- जी के फायदे 
उपयोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता की ऑडियो और वीडियो सुविधा उपलब्ध है ।  इसमें  गति बढ़ने के साथ, टेक्स्ट,मल्टीमीडिया में समान गति होती है .4जी में डाउनलोड की स्पीड 100 मेगा बाइट प्रति सेकेंड है. 3जी में 21 मेगा बाइट प्रति सेकेंड है.इससे हाईडेफिनेशन मोबाइल टीवी और वीडियो कांफ्रेंसिंग भी की जा सकती है.फास्ट स्पीड ब्रॉडबैंड सर्विस से इंडिया को बदला जा सकता है.

भारत में 4 G सेवा की शुरुवात 
इंडिया की एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी भारती एयरटेल ने कोलकाता में 4जी वायरलैस ब्रॉडबैंड सर्विस की शुरुआत कर दी है. रिलायंस इंडस्ट्रीज जियो इन्फोकॉम ने  १ साल के अन्दर भारत में व्यापक स्तर पर फोर जी सेवा की शुरुवात करेगी.









Sunday, June 16, 2013

क्या है टेबलेट कंप्यूटर जिसकी चर्चा आज बड़े जोर शोर पर है

मेरे प्यारे स्टूडेंट्स आज हमारे पास कई मॉडल के कंप्यूटर उपलब्ध है जैसे डेस्कटॉप, लैपटॉप
,नोटबुक ,टेबलेट. ये जो टेबलेट कंप्यूटर है ये अन्य कंप्यूटर से काफी छोटा होता है एक स्लेट नुमा इसा आकर होता है विशेष कर इस कंप्यूटर का प्रयोग फील्ड वर्क में बिजनेस से सम्बंधित कार्यो को करने के लिए किया जाता है.आप इस टेबलेट कंप्यूटर के द्वारा इन्टरनेट,टेलीविज़न,मूवीज,म्यूजिक,तथा इलेक्ट्रॉनिक बुक,लोगो से बाते भी कर सकते है.इस टेबलेट का प्रयोग शिक्षण कार्यो में भी होने लगा है जन्हा बच्चो को इबुक तथा एनीमेशन पर आधारित पाठ्यक्रम के जरिये पढाई होती जिससे बच्चो को कठिन विषय भी सरलता से समझाया जा सकता है.

टेबलेट कंप्यूटर की विशेषता

  1. टच स्क्रीन सिस्टम (स्क्रीन की २१- ३६ लम्बी एलसीडी)
  2. बहुत छोटा और हल्का आकार में स्लेट या डायरी जैसा (इसका वजन लगभग ७०० ग्राम)
  • ये नमी गर्मी व गिरने से जल्दी ख़राब नहीं होगे.
  • मोबाइल सेवा से युक्त है
  • टेबलेट कंप्यूटर की हिस्ट्री
  • ब्लू टूथ, वाई. फाई टेक्नोलॉजी से लैस

  • टेबलेट कंप्यूटर कि सर्वप्रथम अभिकल्पना माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने २००७ में की थी और वह उसके लिए विशेष प्रकार हार्डवेयर और विंडोज एक्सपी टेबलेट पीसी का सॉफ्टवेर लाँच किया था. एप्पल कम्पनी ने २०१० में आई पैड नाम से टेबलेट पीसी मार्केट में लाँच किया.
    भारत की हैदराबाद कि एक
    आई०
    टी० कंपनी नोशन इंक ने टच स्क्रीन टेबलेट पीसी बनाया जिसमे गूगल कम्पनी का एंड्रोइड आपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग किया गया है. भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मन्त्रालय ने जुलाई २०१० में साक्षात नामक टैबलेट पीसी का प्रोटोटाइप पेश किया जिसका विकास विभिन्न आइआइटी ने मिलकर किया है। यह १० इंच लम्बा तथा ५ इंच चौड़ा टैबलेट पीसी है जो कि लिनक्स प्लेटफॉर्म पर चलता है। यह विद्यार्थियों तथा शिक्षा के क्षेंत्र को ध्यान में रखकर बनाया गया है।लैप टॉप और टेबलेट में बेसिक अंतर
    आम लैपटॉप और टेबलेट पीसी में कई अंतर और अपनी-अपनी विशेषताएं व कमियां हैं। जैसे, माउस या कीबोर्ड की इसमें आवश्यकता ही नहीं पड़ती। एक ओर जहां इसकी टचस्क्रीन सुविधा अपने आप में फायदेमंद है, वहीं स्क्रीन संवेदनशील होने के कारण उसके टूटने का डर भी रहता है।
    टेबलेट कंप्यूटर के मुख्यत:
    तीन कंपनिया है
    :-
    -एप्पल का आई पैड जो आइओऍस सॉफ्टवेर पर चलता है - टैबलेट ऍण्ड्रॉइड ये गूगल कम्पनी का सॉफ्टवेर है इस समय सबसे अधिक टेबलेट इसी सॉफ्टवेर पर आ रहे है - माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के टेबलेट इसी मार्केट की भागीदारी अभी कम है

      टेबलेट पीसी में प्रयोग होने वाले हार्डवेयर
    1. वाइ-फाइ सक्षम
    2. फिक्स्ड इथरनेट क्षमता
    3. मिनी तथा फुल यूऍसबी
    4. मिनीऍसडी कार्ड स्लॉट
    5. सिम कार्ड स्लॉट
    6. वीडियो आउट
    7. हैडफोन जैक
    8. २ जीबी मेमोरी मेमोरी कार्ड के द्वारा
    9. २ वॉट पावर कंजप्शन सौर चार्जिंग के विकल्प सहित
    साक्षात का प्रोटोटाइप
    • विकासकर्त्ता भारतीय विज्ञान संस्थान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
    • निर्माता ऍचसीऍल इन्फोसिस्टम्स
  • प्रकार टैबलेट
  • रिलीज़ तिथि 2011
  • आरंभिक मूल्य १५०० (सरकार के लिये एक प्रति का मूल्य, यदि रिटेल बिक्री हो तो मूल्य अधिक होगा)
  • प्रचालन तंत्र लिनक्स तथा थोड़ा ऍण्ड्रॉइड
  • पावर आन्तरिक रिचार्जेबल नॉन-रिमूवेबल लिथियम-पॉलीमर बैटरी
  • भण्डारण क्षमता फ्लैश मेमोरी, ऍक्सपैण्डेबल माइक्रो-ऍसडी स्लॉट
  • स्मृति २ जीबी ऍलपी-डीडीआर२/डीडीआर२
  • इनपुट मल्टी-टच रजिस्टिव टचस्क्रीन डिस्प्ले, हैडसैट कण्ट्रोल


  • टेबलेट प्राइस आज मार्केट में कई कंपनियों के टेबलेट पीसी आ चुके है जिसकी कीमत ५००० से लेकर ३५००० तक है. इसमें जो मुख्य कंपनिया आई वाल, एचसीएल, सैमसंग, zync,स्वाइप टेलिकॉम टेबलेट पीसी के फोटो :-


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    Sunday, May 19, 2013

    INTERNET CLASS TOPICS

    प्यारे दोस्तों मै आज आपको इन्टरनेट तकनीक के बारे बेसिक जानकारी देना चाहता हूँ क्योकि आज हर जगह इन्टरनेट की चर्चा होती है आपके दिमाग में कई प्रकार के सवाल उठते होंगे जिस पर हम बहुत ही बिनियादी तरीके से बात करेंगे 

    प्र १ - इन्टरनेट क्या है ?
    उ १ - इन्टरनेट एक नेटवर्क है 
    प्र २ - अब नेटवर्क क्या ?
    उ १ - नेटवर्क का मतलब दो या दो से अधिक कंप्यूटर को आपस में जोड़ कर एक कंप्यूटर की फाइल को दुसरे कंप्यूटर से एक्सेस करना 

    यह नेटवर्क बसिकैल्ली दो प्रकार के होते है जो क्रमशा नीचे दिए है 

    लैन - लोकल एरिया नेटवर्क - इसमे कम्पुटर को जोड़ने के लिए केबल या वायरलेस मीडिया का यूज़ किया जाता है इसकी रेंज कुछ किलोमीटर तक होती है। इसका प्रयोग साइबर कैफे,ऑफिस,और होम के कंप्यूटर को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है और इसकी स्पीड फ़ास्ट होती है। 

    वैन - वाइड एरिया नेटवर्क इस प्रकार के नेटवर्क में इसमे कम्पुटर को जोड़ने के लिए केबल या वायरलेस मीडिया का यूज़ किया जाता है  ये केबल और वायरलेस मीडिया किसी टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी का होता है इस प्रकार के नेटवर्क का दायरा आल वर्ल्ड होता है जहा कोई भी कंप्यूटर दुनिया के किसी कंप्यूटर से सूचना प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार के नेटवर्क की स्पीड स्लो होती है। 




    Thursday, September 16, 2010


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